जीवनोपयोगी जड़ी - बूटियाँ
हम ' जड़ी - बूटियों ' के द्वारा चिकित्सा करने के बारे में बताने से पहले यह बता देना आवश्यक समझत हैं कि शरीर में रोगों की उत्पत्ति क्यों होती है? अच्छे खान - पान के बाद भी हमारा शरीर अस्वस्थ क्यों रहता है? प्रायः वात, पित्त और कफ आदि के दूषित हो जाने से ही शरीर में किसी - न - किसी रोग की उत्पत्ति हो जाती है और रोग की यह उत्पत्ति ही शरीर के स्वास्थ्य को चौपट कर डालती है । आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथों में भी इन दोषों को ही रोगों की उत्पति का सबसे बड़ कारण बताया है । 'त्रिदोष ' शरीर को दूषित करने वाले, हानि पहुंचाने वाले होते हैं। ये त्रिदोष यानी तीनों दोष हृदय और नाभि के बीच में और ऊपर व्याप्त होकर अवस्था , दिन, रात और भोजन के अंत , मध्य और आदि में , क्रम से गमन करते हैं। चूंकि ये धातु और मल को दूषित करते हैं, इस कारण इनको ' दोष ' कहा गया है।
शरीर के इन रोगों को दूर करणे के लिए नैसर्गिक जड़ी - बूरयाँ अत्यंत उपयोगी हो सकती है ।
' अंगूर'
संस्कृत में इसे द्राक्षा और मराठी में द्राक्षे हिंदी में अंगूर दाख ,मुनक्का और अंग्रेजी में Grape फारसी में अंगूर गुजराती में द्राक्ष तेलुगु में द्राक्षा अरबी भाषा में हबुसआदि नाम होते हैं । अंगूर के पत्ते गोल , हरे , बैंगनी रंग मिश्रित होते हैं। शिशिरऋतु मॅ पुष्प लगने के बाद गुच्छों में अंगूर लगते हैं। ये कच्चे रहने पर हरे और पकने पर श्वेत पीत हो जाते हैं। सूख जाने पर यही छोटे फल किशमिश और बड़ मुनक्का बन जाते हैं। अंगूर की कई जातियां हैं। किन्तु हरेक जाति का अंगूर उत्तम और प्रायः निर्दोष होता है। इसके अणु - अणु में जीवनीय तत्व निहित हैं। रोगी व्यक्ति के लिए यह अमृततुल्य है ।
अंगूर के गुण : -
पका अंगूर दस्तावर , शीतल , पुष्टिकारक , भारी , वाणी उत्तम करने वाला तथा बलवीर्य को बढ़ाने वाला है । कच्चा अंगूर उपर्युक्त गुणों से विपरीत तथा भारी होता है । मुनक्का श्रमहर , स्निग्ध तथा मृदु - रेचक है । यह ज्वर की प्यास , दाहयुक्त पीड़ा तथा कोष्ठबद्धता में हितकर है। इसके पत्ते कसैले होने के कारण अतिसार में प्रयोग करने योग्य हैं।
प्रा . डॉ. हनुमंत ये . गायकवाड
न्यू आर्ट्स कॉमर्स ॲन्ड सायंस कॉलेज पारनेर , अहमदनगर
हिंदी विभाग
Good Information 🙏☺️
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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