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१४ सितंबर हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर

            १४ सितम्बर हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर     राष्ट्रभाषा हिंदी ।                          हिंदी वह धागा है, जो विभिन्न मातृभाषाओं रूपी फूलों को पिरोकर भारत माता के लिए सुन्दर हार का सृजन । हिंदी की प्रगति से देश की सभी भाषाओं की प्रगति होगी हिंदी के बिना भारत की राष्ट्रीययता की बात करना व्यर्थ है । देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिन्दी ही हो सकती हैं। हिन्दी पढ़ना और पढ़ाना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । हिन्दी देश की एकता की ऐसी कड़ी है जिसे मजबूत करना प्रत्येक भारतीय कर्त्तव्य है। साहित्य का राष्ट्र की उन्नति से घनिष्ठ सम्बन्ध है । नागरी साहित का घनिष्ठ सम्बन्ध नागरी लिपि से है। यदि नागरी लिपि में बँगला, गुजराती तथा उर्दु के चुने - चुने उत्तम ग्रन्थ छपें तो उनका प्रचार हिन्दी भाषी सभी प्रान्तों में बहुत अधिक हो । हिन्दी साहित्य धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष इस चतुः पुरुषार्थ का साधन है, अतएव जनतोपयोगी है । भाषा भी देश के अनुसार ही बनती है, इसकी बनाने वाली प्रकति देवी ह...

जीवनोपयोगी जड़ी - बूटियाँ

              हम ' जड़ी - बूटियों ' के द्वारा चिकित्सा करने के बारे में बताने से पहले यह बता देना आवश्यक समझत हैं कि शरीर में रोगों की उत्पत्ति क्यों होती है? अच्छे खान - पान के बाद भी हमारा शरीर अस्वस्थ क्यों रहता है? प्रायः वात, पित्त और कफ आदि के दूषित हो जाने से ही शरीर में किसी - न - किसी रोग की उत्पत्ति हो जाती है और रोग की यह उत्पत्ति ही शरीर के स्वास्थ्य को चौपट कर डालती है । आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथों में भी इन दोषों को ही रोगों की उत्पति का सबसे बड़ कारण बताया है । 'त्रिदोष ' शरीर को दूषित करने वाले, हानि पहुंचाने वाले होते हैं। ये त्रिदोष यानी तीनों दोष हृदय और नाभि के बीच में और ऊपर व्याप्त होकर अवस्था , दिन, रात और भोजन के अंत , मध्य और आदि में , क्रम से गमन करते हैं। चूंकि ये धातु और मल को दूषित करते हैं, इस कारण इनको ' दोष ' कहा गया है।           शरीर के इन रोगों को दूर करणे के लिए नैसर्गिक जड़ी - बूरयाँ अत्यंत उपयोगी हो सकती है ।                      ...